शारदीय नवरात्रि 2025 – बिहार में कैसे मनाएँ?

हर साल शारदीय नवरात्रि में दुर्गा माँ के नौ दिन के उत्सव में लाखों लोग जुड़ते हैं। अगर आप भी इस साल सही तरीके से पाइये, तो पढ़िए ये गाइड – तिथियाँ, भजन, खास रिवाज़ और स्थानीय कार्यक्रम सब कुछ एक जगह।

नवरात्रि का महत्व और इतिहास

नवरात्रि का मतलब है नौ रातें, जो शिव के तांडव के बाद दुर्गा माँ के विजय का जश्न है। पुरानी कथाओं में बताया जाता है कि माँ ने दुष्ट रावण, बुराइयों और अंधकार को हराया, इसलिए इस समय को शक्ति और शुद्धि का माना जाता है। हर रात में एक अलग रूप की पूजा होती है – शैलपुत्री से लेकर कलिका तक, और अंत में दुष्ट मोड से मुक्त होकर सबको आशा देते हैं।

बिहार में नवरात्रि का खास हिस्सा है ‘भजनी’ और ‘रावण दहन’। गाँव‑शहर दोनों में दुर्गा के पंडाल लगते हैं, जहाँ स्थानीय महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग मिलकर गीत‑भजन गाते हैं। यह ऊर्जा को सकारात्मक रखने का शानदार तरीका है।

बिहार में नवरात्रि कैसे मनाते हैं

बिहार में नवरात्रि की शुरुआत आमतौर पर अक्टूबर के पहले शनिवार से होती है। 2025 में यह 8 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक चलेगा। अगर आप शहर में रहते हैं, तो पटना, गया और राजगीर के बड़े मंदिरों में कार्यकुशल पुजारी की व्यवस्था मिलती है। नयी‑नयी सजावट, सोने‑चाँदी की मूरतें और रंग‑बिरंगी रौनक देखी जा सकती है।

गाँव में अक्सर खुला पंडाल बनता है जहाँ सभी लोग एकत्र होते हैं। यहाँ खास बात है – ‘सूरज भक्ति’ का नृत्य, जहाँ हाथ में जलती हुई ‘दीवा’ लेकर लोग घूमते हैं। यह दृश्य देखकर आप भी थोड़ी देर के लिये रुकेंगे और ऊर्जा महसूस करेंगे।

पूजा की तैयारी में सबसे जरूरी है ‘कुंड’ – साफ पानी का भांडा, जिसमें धूप‑धुयाँ के साथ देवी को वंदन किया जाता है। कई घरों में ‘गुड़‑सिरका’ का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि माना जाता है इससे माँ की कृपा बढ़ती है। अगर आप बाहर जा रहे हैं, तो एक छोटा कुंड और लाल कपड़े ले जाएँ; ये सभी जगह मान्य होते हैं।

भोजन में भी कुछ खास रिवाज़ होते हैं। ‘नवरती फालूदा’, ‘सामग्रि’ और ‘खीर’ को अक्सर माँ के आगे चढ़ाया जाता है। अगर आप स्थानीय व्यंजनों को भी आज़माना चाहते हैं, तो ‘लिट्टी‑चोखा’ और ‘सत्तू’ को नज़रअंदाज़ न करें। ये स्वाद और आध्यात्मिकता दोनों को बढ़ाते हैं।

पूजा के बाद का सबसे रोमांचक हिस्सा है ‘रावण दहन’। पाँचवीं रात को हर घर में रावण के पुतले को जलाया जाता है। यह बुराई को दूर करने का प्रतीक है। बिहार में इसे ‘बज्रध्वज’ के साथ किया जाता है, जो पूरे गाँव में सुनाई देता है। अगर आप पहली बार देख रहे हैं, तो सावधानी से दूरी रखें, लेकिन उत्सव की आवाज़ सुनें – यह मन को हल्का कर देती है।

यदि आप यात्रा कर रहे हैं, तो स्थानीय ‘भक्ती मंडली’ से जुड़ें। अक्सर वे सामाजिक सत्कार, मुफ्त भोजन (भोजन) और छोटे‑छोटे उपहार (प्रसाद) देते हैं। यह न केवल आपकी यात्रा को यादगार बनाता है, बल्कि स्थानीय संस्कृति में आपका स्वागत भी करता है।

अंत में, नवरात्रि के नौवें दिन ‘विजया दशमी’ मनाते हैं। इसका मतलब है ‘विजय की दशमी’ – माँ ने बुराई पर जीत हासिल की। इस दिन घर की सफ़ाई, नए कपड़े और मिठाइयाँ बांटना अनिवार्य है। अगर आप बिहार में हैं, तो स्थानीय बाजारों में ‘खुसखुशीत मिठाइयाँ’ देखना न भूलें।

समाप्ति में, शारदीय नवरात्रि सिर्फ पूजा ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता, ऊर्जा की पुनः पूर्ति और आत्मविश्वास को फिर से जाग्रत करने का समय है। इस बार आप भी पूरी प्रेरणा के साथ भाग लें, और अपने जीवन में नई रोशनी लाएँ।

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