एक तरफ़ नीतीश कुमार “प्रवासी” शब्द की नैतिकता पर उपदेश देते हैं और दूसरी तरफ़ अपना असली रंग दिखाते हुए श्रमवीरों को लाठी से पिटवाते है, पैदल चलने पर मजबूर करते है। मुसीबत की घड़ी में उन्होंने राज्यवासियों को छोड़ दिया। उन्हें बिहार नहीं घुसने और आने पर वापस भेजने की धमकी दी। मुख्यमंत्री ने ट्रेन और बस नहीं होने का बहाना देकर उन्हें आर्थिक, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी। क्वारंटाइन सेंटरो में मज़दूरों के साथ पशुवत व्यवहार किया गया। उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया गया। क्वारंटाइन सेंटरो में खाने में साँप, बिच्छू और छिपकली के साथ सूखा भात, नमक और मिर्च परोसी गयी।
बिहार आने पर माटी पुत्र श्रमवीरों का लाठी-डंडों से स्वागत कराया जाता है जबकि दूसरे प्रदेश अपने श्रमवीरों का फूलों से स्वागत कर रहे है। सरकारी ख़ामियाँ बताने पर अधिकारियों द्वारा श्रमिकों पर अत्याचार किया जाता है। उन्हें इलाज और उपचार से वंचित किया जाता है। उनके अधिकारों के नाम पर करोड़ों की निकासी कर भ्रष्टाचार की गंगा बहाई जा रही है। आज भी कटिहार रेलवे स्टेशन पर श्रमिकों को पीटा गया है।
जिन्होंने 15 वर्षों में एक सुई का कारख़ाना नहीं लगवाया वो चुनाव देख अब कारख़ाने और रोज़गार की लफ़्फ़ाज़ी कर रहे है। मुख्यमंत्री को बिहार के श्रमवीरों से अविलंब माफ़ी माँगनी चाहिए।
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