पाँच वर्षीय आजमा जहाँ ने रोजा रहकर अल्लाह से दुआ मांगी

पाँच वर्षीय आजमा जहाँ ने रोजा रहकर अल्लाह से दुआ मांगी

संवाददाता :- जमीरुल हक , गोपालगंज बिहार

माह-ए-रमजान में हर मुसलमान का सिर सजदे में झुकता है और हाथ दुआ को उठते हैं. रोजेदार इबादत करते हैं और अल्लाह अपने बंदों पर ‘रहमत’ नाजिल फरमाता है. इस पवित्र माह का पहला अशरा ही रहमत का होता है. अल्लाह बंदों के गुनाहों को पस्त कर नेकियां खाते में जोड़ता है. रमजान के महीने को तीन अशरों में बांट गया है. पहला रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरे में अल्लाह अपने बंदों पर दौजक से निजात दिलाता है. पहले अशरे में अल्लाह अपने बंदों पर रहमत फरमाते है ।रमजान के महीने में हर मुसलमान अपने मन और शरीर को पवित्र रखता है. वह हर शख्स के साथ विनम्रता का व्यवहार करता है. कोशिश रहती है कि उससे कोई भी गलत कार्य न हो. रोजे में बुरी आदतों पर काबू करके अच्छे विचारों का आदान-प्रदान करते है। वही गोपालगंज के जंगलिया के रहने वाले आसिफ इमाम की पांच बर्षीय पोती आजमा जहां ने छोटी उम्र में रोजा रखा है। और उससे भी बड़ी बात ये है कि उसने अपने घर मे टी वी पर कोरोना जैसे शब्दों को बार बार सुनकर अपने अम्मी से ये पूछा करती थीं कि कोरोना क्या है फिर उसकी माँ ने बताया कि यह एक खतरनाक बीमारी है जिसके लिए दुनिया भर के लोग अल्लाह से दुआ कर रहे है । कि इस बीमारी को जल्द दुनिया से खत्म कर दे अपनी अम्मी के इस बात से प्रभावित होकर उसने जिद्द किया कि वो भी रोजा रहकर दुआ मांगेगी और आज वो रोजा रह कर दुनिया से कोरोना मिटने की दुआ कर रही है।

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